SOCIAL MEDIA AUR RAMZAAN
व्हाट्सएप, इंस्टाग्राम, स्नैपचैट और फे़सबुक जैसे सोशल मीडिया प्लेैटफॉ़र्म्स रमज़ान के दिनों में मुसलमानों के साथ साथ वो भी मुसलमान हो जाते हैं। जिस शिद्दत से बिचारों के ऊपर इस्लामिक स्टेटस थोपे जाते हैं वो भी अपने पुराने डेटाबेस में जाकर अपने इस्तेमाल करने वालों को पलटुराम कहकर हंसते होंगे। इंस्टाग्राम कहता होगा अभी दस दिन पहले इसने अपनी खवातीन दोस्तों के साथ एक गाने के साथ तस्वीर लगाई थी और आज इफ्तारी के साथ सेल्फी़ लेकर इफ़्तारी डन की स्टोरी लगा रहा है। फेसबुक पर सियासत पर टिप्पणी करते हुए अंकल रमज़ान में कौ़म के लिए इंतेहा फ़िक्रमंद हो जाते हैं।
रमज़ान में माहौल जो भी हो लेकिन ईद के दिन तो सोशल मीडिया प्लेैटफॉ़र्म्स कहते होंगे : हाइपोक्रिसी की भी सीमा होती है! क्यूंकि उस दिन मिया भाई लोग सलमान भाई की फ़िल्म देखते हुए स्टेटस लगाएंगे और इस तरह एक महीने के तज़किए का जनाज़ा ईद की नमाज़ के साथ पढ़ दिया जाएगा।
ज़रा सोचिए.... जिस तरह इन सोशल मीडिया प्लेैटफॉ़र्म्स पर आपके सारे डिजिटल फु़टप्रिंट्स मौजूद रहते हैं उसी तरह आपके कंधों पर बैठे फरिश्तों के पास आपके सारे डिजिटल और नॉन डिजिटल फुटप्रिंट्स रिकॉर्डेड हैं। आपके सोशल मीडिया प्लेैटफॉ़र्म्स के बारे में आपके अलावा कोई नहीं जानता। फरिश्तों ने रिकॉर्ड में लिख रखा होगा की हम रोज़े की हालत में गाली देते थे, सोशल मीडिया पर बदनज़री करते थे, फ़ालतू रील्स देखते थे, गी़बत करते थे और बहुत कुछ। लेकिन फरिश्तों के पास जो ये हमारी हरकतों के डेटाबेस हैं उसका रिकॉर्ड रोज़े महशर अल्लाह के सामने पढ़वाया जाएगा। तो सोचिए क्या हम वो चीज़ें अल्लाह के सामने पढ़ पाएंगे जो अभी हम कर रहे हैं? और इससे भी मायूसी वाली बात तब होगी जब वो रिकॉर्ड बाएं हाथ में दिया जाएगा।
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